Saturday, January 14, 2012

बेटी - A Bliss

सजा नहीं सपना होती है बेटी,
गैरो के बिच अपना होती हे बेटी |
रंगों से सजाती हे घरो को,
आँगन की कल्पना होती हे बेटी |
वेदना नहीं वरदान  होती हे बेटी,
आस्था और अरमान होती हे बेटी |
वजूद उसका कभी मिट सकता नहीं,
भार नहीं जीवन का सार होती हे बेटी |
जीवन की उलझी रहो के बीच,
एक सहज संवेदना होती हे बेटी |
हक़ होता हे पर हक़ की बात कभी करती नहीं ,
हकीकत और हसरतों का इन्द्रधनुष होती हे बेटी |
आँखों में रखकर पलकों पर सजाती हे जीवन ,
सच कहो तो कभी सीता तो कभी राधा होती हे बेटी | 

4 comments:

induravisinghj said...

wow!!!!!!!!!! really true,very touchy poem....

vinisha said...

thnanks alot mam :)

“आशु” said...

बहुत खूब लिखा है क्या दर्शाया है....
काश कि आपकी ये पंक्तियाँ हमारे देश मैं हर कोई सुन पाता समझ पाता ...

"भार नहीं जीवन का सार होती हे बेटी"

गुस्ताखी माफ कुछ शब्द अपने भी जोड़ना चाहूँगा -- बेटी के बारे मैं बच्चों से पूछे तों माँ कहेंगे, बाप से पूछो तों बेटी कहेंगे, सहेलियों से पूछो तों हमराज कहेंगे कभी पतियों से पूछियेगा तों कहेंगे-

है गर वो कहीं बेटी
कही माँ,
कही अन्नपूर्णा,
कहीं हमराज़
पति से कोई पूछे
तों कहेंगे
तू गामिनी,
तू ज्वाला,
तू भभक,
तू लेश,
तू गुनगुन,
तू भाविका,
पर है तू
मन मोहिनी
तू एक माया
एक रूप मैं कई अवतारों कि माया ....

vinisha said...

ashu ji....thnkkuu so much ,,, aapki panktiyan meri kavita se kayi zyada achhi hai :)